17/12/22

नदी

क्या नदी बहती है 

या समय का है प्रवाह

हममें से होकर 

या नदी स्थिर है 

पर हमारा मन 

खिसक रहा है 

क्या नदी और समय वहीं हैं 

उस क्षैतिज रेखा पर 

और बह रहे हैं हम 

क्षितिज की ओर 

30/11/22

देहलीज़

डूबती हुई ज़िंदगी के मुहाने पर

फ़ेड होती कहानियों का रजिस्टर

गलियारे के आख़िरी छोर पर

नींद के धुंध में गुम हो जाने वाली दास्तान

सड़कों, अस्पतालों, युद्ध के मैदानों और हॉस्पिस सेंटर्स में,

और उन ख़ामोश कमरों से

जहां प्रार्थनाओं के सिवा कुछ नहीं उठता

जहां कशमकश, चाहतें, तमन्नाएं, कामनाएं टहलती हैं

ढेर सारे काश के साथ, लिए बहुत सारा आकाश

स्मृति की ड्योढ़ी पर

दुख और सुख की मौजूदगी में 

देहलीज़ जो सबको लांघनी है एक बार 

17/8/20

टूटा पत्ता

टूटा हुआ एक पत्ता 

कितनी देर तलक टिक पाएगा

शाम ढलेगी, रात गहराएगी

तुंद हवा कहीं उसे ले जाएगी

मचलेगा वो, सहमेगा वो और बहुत रोएगा वो

पर बेचैनी उसे टूटकर बिखराएगी

नसीम चूमेगी उसे जब तो

होश की दहलीज़ पर

उसे कोई थपथपाएगा

सुबह होगी जब किसी दरख्त तले

नींद टूटेगी, मुहब्बत धूप से सहलाएगी

साए पड़ेंगे शाम के यादों के झुरमुट तले

इस शहर से उस शहर वो भागेगा

पहुंच न पाएगा

दरख़्तों से झांकते नए पत्ते

उसे चिढ़ाएंगे, डराएंगे

बारिशें होंगी, बूंदे उसे ले जाएंगी

फ़लक का दामन समेटे वो दूर से आएंगी

जीने की ललक में इक बार वो

फिर हरा हो जाएगा

खारी हवा लेकिन उसे फिर ज़र्द कर जाएगी

उंगलियों में गिरेगा वो किसी की

और चुपचाप सो जाएगा

18/3/16

घोड़े की लाश से प्यार करने वाले तुम!

मैं उसे परपीड़क कहूँगा, घोड़ों की लाशों से प्यार करने वाला. मगर ये बात फ़िज़ूल है- वुडी एलेन

बस लाश ही हूँ मैं, टांगों के सिवा, जिसे आपमें से कुछ प्यार करते हैं, मगर अब यह बेमानी है.
मेरी ख़ूबसूरती, रफ़्तार, मेधा और वफ़ादारी ही थी, जिसके लिए आप प्यार करते थे. अब मैं आपके किसी काम का नहीं, क्योंकि मैं अब लंगड़ा हूँ. और एक लंगड़ा घोड़ा, घोड़ा नहीं होता.
आपने जब एडवेंचर शुरू किया, जंग लड़ीं, अमन के अभियान किए, तब से मैं आपका साथी हूँ, हमारा रोमांस काफ़ी पुराना है. इतिहास में बेशक आप बाद में शामिल हुए, पर जब आपने मुझे अपनाया, मैं आपका हो गया.

मेरे पास दो जोड़ी ताक़तवर पैर थे, जिनकी बदौलत मैं रॉकी के पहाड़ों और फिर स्तेपी के मैदानों से लेकर अरब की रेगिस्तानी ज़मीन और बाद में एशिया के ऊंचे-नीचे पठारों तक छलांगें भरता रहा. 

मेरे पैरों की ही कुव्वत थी कि मैं बिजली की रफ़्तार से जंगलों, नदियों, पहाड़ों और मैदानों को पार कर सकता था. और आपको मेरी इन सुडौल टांगों और मज़बूत जिस्म की ज़रूरत थी.

मैं जंगली तो था, पर उजड्ड नहीं बिल्कुल आपकी तरह. मैं सिर्फ़ घास और पौधों के बल पर ज़िंदगी बसर कर सकता था. मेरी ज़रूरतें हमेशा आपसे थोड़ी रहीं. इसलिए हमारी निभ गई.

जब डायनोसॉर धरती पर शायद सबसे बदसूरत शै, धरती के अकेले शहंशाह थे, जो अपनी कुटिलता के साथ हमें बर्बाद करने पर आमादा थे, तब भी मैं बचा रहा और ये आज भी मुझे ताज्जुब जैसा लगता है. हालांकि अब मुझे पता है कि हमारे जिस्म छोटे थे पर दिमाग़ बड़े थे. बड़े दिमाग़ और हमारी शिष्टता उनकी क्रूरता से जीत गई थी.

पैदाइश के सिर्फ़ दस लाख साल पूरा यूरोप हमारा शहर बन गया. हम उसके मैदानों, जंगलों, पहाड़ियों और दलदलों के राजा थे. तब आप कहीं नहीं थे. ये घोड़ों की दुनिया थी.

अगर आप हमारे पूर्वज इओहिप्पस यानी डॉन हॉर्स से शुरू करेंगे तो अब इक्वुस तक मेरी फ़ैमिली ट्री में किसी क्रूरता की मिसाल मिलती हो, ऐसा मुझे याद नहीं. और शायद आपको इल्म न हो, यही इक्वुस सबसे पहले यूरोप और एशिया में आपके काम आए. चुनौतियों से भरपूर महाद्वीप जहां मौसम और आपके साथ तालमेल बिठाना कितना मुश्किल भरा था, हमें अच्छी तरह याद है.

शायद इसीलिए आपके एक पूर्वज ज़ेनोफ़ोन ने हमारे लिए ट्रीटाइज़ ऑन हॉर्समैनशिप में लिखा था– ..घोड़े के मिजाज़ की इस ललक और साहस को देखिए, तो बिल्कुल इंसानी जुनून की तरह है.

आज हमारी यही रफ़्तार और हमारे पैरों की टाप आपको शायद कलंक लगती है, पर कभी ये आपकी चाहत और जुनून था. इसके बिना तो हम आपके लिए सिर्फ़ लद्दू जानवर ही होते. गुरुत्व के ख़िलाफ़ खड़े आपके दो लंबवत पैर और बेडौल जिस्म के लिए रफ़्तार एक सपना था. पतले, ख़ूबसूरत, ताक़तवर, लोचदार, ज़मीन पर ज़बर्दस्त पकड़ रखने वाले हवा की मानिंद पैर आपके पास कभी नहीं थे.

जब आपके उपमहाद्वीप में संस्कृत जैसी ज़बान जन्मी, तो हमें उसमें अश्व कहा गया. अश का मतलब था तेज़. रोमन हमें एसर कहते थे. बेशक हमारे पास लफ़्ज़ नहींस लेकिन आपकी ज़ुबान में हम रफ़्तार का पर्याय थे, इन्हीं खुरों और टांगों की बदौलत, जिन्हें आज आप तोड़ रहे हैं.
एक वक़्त हमारे जिस्म का हर हिस्सा आपके काम का था. हमारी पूजा होती, हमें सारे दिन दौड़ाया जाता और मुकाम पर पहुँचने के बाद हमारा क़त्ल कर दिया जाता, आप हमारे जिस्म के लोथड़ों से अपना पेट भरते, हमारे ख़ून से प्यास बुझाते, हमारी हड्डियों से हथियार गढ़ते ताकि अगले दिन हमारी पीठ पर बैठकर जंग में हमारे वज्र से दुश्मन को काट सकें.

सौंदर्य की पुजारी आपकी ग्रीक बिरादरी के लिए हम मानो देवता थे. दुश्मन पर निशाना साधने के लिए जब आपको अपनी कमान सीधी करनी होती, तो हमें ये बताने की ज़रूरत नहीं होती कि हमारा अगला क़दम कहां पड़ना है. वफ़ादारी हमारी रग-रग में रही है. आपके रोमन पूर्वजों ने हमें लड़ाई से ज़्यादा खेलों में जोता, जहां हमारी जान नहीं, क़दमों की रफ़्तार और आवेग की क़ीमत हुआ करती थी. हम इसमें भी कामयाब रहे. 

आपने हमें धर्मयुद्धों में झोंका, क्योंकि आपको अपने भगवान की श्रेष्ठता साबित करनी थी. पहली बार जब हम आप क्रुसेड में शामिल हुए, तो लाखों साल के इतिहास में यह पहला मौक़ा था, जब आपने एक लाख से ज़्यादा घोड़ों के साथ फ़लस्तीन की तरफ़ सैकड़ों मील तक मार्च किया, ख़तरनाक पहाड़ों, दर्रों, मैदानों का सफ़र. शायद आपको जानकर ताज्जुब हो कि हम इतने सख़्तजान थे कि हममें सिर्फ़ कुछ सौ को ही मौत ने छीना, आपकी कैज़ुअल्टी हमसे ज़्यादा थीं.

हमने आपकी सड़कें बनाईं, हम पहाड़ों पर चढ़े, मैदानों में दौड़े, नदियां पार कीं, खाई पार कीं, जिन्हें आपका कमज़ोर जिस्म कभी नहीं कर सकता था. हममें वो ताक़त थी, जज़्बा था.

जब आपने रेल बनाईं तो उन्हें कहा- आयरन हॉर्स. क्योंकि आपकी कल्पना में तब तक हमारी रफ़्तार ही सबसे तेज़ रफ़्तार थी. हॉर्सपावर एक मानदंड बना, जिसे आप आज तक नहीं बदल सके हैं.

शिकार में, पोलो में, बुज़कशी में, सर्कस में, हॉर्स ऑपरा में और यहां तक कि आपकी कला में हम ही आपके हीरो रहे हैं. आप निकालकर तो देखिए, हमारे बगैर आपका इतिहास बेहद सुस्त और कायराना होगा. हम आपकी कीर्ति, यश, प्रसिद्धि और प्रभुता के वाहक हैं. आपके एक पूर्वज इरविन ने ही कहा था– एक सुंदर घोड़े की सवारी कुछ ऐसा है, जिसमें नश्वर होने से कुछ ऊपर होने का अहसास होता है.

आज जब मेरे होने के लिए शायद सबसे बेहतर हालात हैं, तो मैं आपसे ख़ौफ़ज़दा हूँ. मेरे सामने डायनोसॉर से ज़्यादा बदसूरत, अहसानफ़रामोश, निर्मम, डरपोक और मेरे वुजूद को मिटा देने वाली शै खड़ी है.

साढ़े चार लाख साल से मैं हूँ. शायद आगे भी रहूँगा. जब आप नहीं थे तब भी और जब नहीं होंगे शायद तब भी. आपकी आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस में भी मेरे लिए जगह है, मगर आपके भंगुर शरीर के लिए नहीं. मैं आपकी दया पर ज़िंदा नहीं हूँ.
पर आप बेवफ़ा हैं. कायर हैं.
(तस्वीरें सिर्फ़ प्रतीकात्मक उद्देश्य के लिए हैं, व्यावसायिक प्रयोग के लिए नहीं)

28/12/15

हम भी डीकंपोज़ होते हैं..

कुछ औज़ार, बेजान जिस्म, एक जोड़ा चश्मदीद आंखें
अकड़ी हुई सख़्त नीली सी उंगलियां, सर्द
इसे डीकंपोज़ होने में अभी वक़्त लगेगा
लाशें एकदम फ़ना नहीं होतीं
डॉक्टर ने साफ़ कह दिया था.
खुदकुशी, क़त्ल, हादसा, बीमारी
हर मौत दूसरी से अलग है
हर तरीक़े का जवाब भी जिस्म अपने ढंग से देता है
मगर
हमारे वक़्त में मौत क़ुदरत के हाथ नहीं
हम ही हम को छीन लेते हैं
कुछ हादसे छीनते हैं हमें और
बहुत से अस्पतालों के ख़ामोश कमरों और बेज़ुबां दीवारों के बीच
बीमारियों से शिकस्तज़दा होकर पहुंचते हैं
एक सफ़र है ये बस
सड़कर हम इसी दुनिया में बिखरते हैं
कहते हैं कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती
सिर्फ़ रूपांतरित होते हैं
जिस्म भी पानी, राख, आवाज़ और आकाश में तब्दील होता है
मौत के दरवाज़ा खटखटाते ही जिस्म ख़ुद को पचाता है
बुझते हुए दिल के साथ ही हम लाश नहीं बनते
जिस्म को रवां रखने वाले सेल पहले ऑक्सीजन से महरूम होते हैं
टूटकर रगों में पिघलते हैं और फिर हमारे एक-एक अंग अंदर ही अंदर
ख़ुद को पचाने लगते हैं
धमनियां फटती हैं, शिराएं चरमराती हैं
ख़ून की गर्मी फ़ना होकर उसे जमाने लगती है
बदन अकड़ता है, पहले पलकें, जबड़े और हमारी गर्दन फिर मांसपेशियां
करोड़ों बैक्टीरिया भीतर और बाहर क़ब्ज़ा जमाकर
महाभोज के लिए पहुंच चुके होते हैं
हमारी आंतें कभी सब कुछ पचाती थीं
अब उन्हें केमिकल और बैक्टीरिया पचाएंगे
आंतें, फिर लिवर और इसके बाद दिल और आख़िर में दिमाग़
हर टुकड़ा वापस क़ुदरत को मिलेगा
ज़िंदगी के स्रोत में मिलेगा
पेट की जगह मशरूम उगेंगे
जिस्म को खड़ा करने वाली हड्डियां खाल को छोड़ देंगी
ख़ूबसूरती के तमाम निशान मिटा दिए जाएंगे
त्वचा का रंग लाल से नीला और नीले से धूसर होगा
इस काली-हरी खाल से अब ख़ुशबू नहीं आती
सड़ते हुए बदन से अब हवा बोझिल होती है
कीड़ों के घोंसले बन चुके हैं, गिद्ध आमंत्रित हैं
मक्खियां इस सड़ते जिस्म को अपना आशियाना बनाएंगी
अंडे देंगी और अपना परिवार शुरू करेंगी
उन्हें ये गंध और स्वाद पसंद है
मक्खियां और उनके बच्चे यहां तब तक रहेंगे
जब तक ये लाश उन्हें भोजन देती रहेगी
उनके रहने से ये जिस्म गर्म रहेगा
मगर इसकी तपिश वो नहीं होगी जो इसके चलते-फिरते हुआ करती थी
लाश के नीचे धरती का रंग बदल रहा है
मिट्टी पर केमिकल असर छोड़ चुके हैं
लाश का आख़िरी सुबूत ये मिट्टी का द्वीप होगा,
जिस पर वो गिराई गई थी
बेहद उर्वर और ज़हरीली
ये द्वीप अपने आसपास की हरियाली को निगल जाएगा
बैक्टीरिया और कीड़ों का घर अब जल्द ही कुछ अदद हड्डियों में
तब्दील होने वाला है
मगर इसी के साथ आसपास का माहौल भी मरेगा
गलकर सड़ने का समय है
क़ुदरत की पाचन शक्ति काफ़ी तेज़ है
हम टूटते हैं, बिखरते हैं और रिसाइकिल होते हैं

राख में, धूल में, पानी में, ज़मीन में, हवा में

25/2/11

मिलिटेंट इस्लाम को चुनौती!

मिस्री क्रांति का मतलब है मुस्लिम ब्रदरहुड की ताकत में इज़ाफ़ा जो मध्यपूर्व में अल कायदा के लिए मुसीबत का सबब होने वाला है..
18 दिन की जद्दोजहद के बाद तहरीर स्क्वेयर पर एक तहरीर लिखी गई- मुबारक के रुख़्सतनामे की। ट्यूनीशिया में एक बेरोजगार की ख़ुदकुशी ने राष्ट्रपति ज़िने अल आबेदीन बेन अली को इतना मजबूर कर दिया कि उन्हें 14 जनवरी को गद्दी छोड़नी पड़ी। ट्यूनीशिया में 23 साल की तानाशाही का अंत मिस्री अवाम को इतनी ताकत दे गया कि राष्ट्रपति होसनी मुबारक को 30 साल की हुकूमत को बेमन से ही सही, अलविदा कहना पड़ा।

अरब मुमालिक में मिस्र का ढहना पूरे अरब में लोकतंत्र के नाम पर चल रही राजशाहियों के लिए ख़तरे की घंटी है। नई दुनिया में और वो भी अरब में जम्हूरी तौर-तरीकों के ज़रिये तख़्तापलट ताज्जुब से कम नहीं, लेकिन यही हक़ीक़त है। सवाल ये है कि दुनिया के लिए मिस्री बग़ावत के मतलब क्या हैं। एक तो यह कि खून बहाए बिना भी अवाम हक की आवाज बुलंद कर सकती है और अगर चाहे तो टैंकों की नालें झंडे फहराने के काम में लाई जा सकती हैं। दूसरे, अब बम और गोलियां नहीं, फेसबुक, ट्विटर और सोशल नेटवर्किंग इन्किलाब का हथियार हैं। तीसरे, अरब दुनिया में बैठे तानाशाह अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। चौथे, अब अमेरिका को अरबों का दिल जीतने में एक सदी लग जाएगी। पांचवें, पैट्रो डॉलर की सियासत और कारोबार अब अमेरिका तय नहीं कर पाएगा। छठे, अरब दुनिया में लोकतंत्र की बुनियाद राजनीतिक इस्लाम के साथ डाली जाएगी। सातवेंअरब का सबसे पुराना सियासी संगठन अल इख्वान अल मुस्लिमीन यानी मुस्लिम ब्रदरहुड पूरी ताकत के साथ खड़ा होगा और आठवीं अहम बात, अल कायदा के मिलिटेंट इस्लाम को चुनौती देगा ख़ुद अल क़ायदा का मादरेवतन, उसकी अपनी ज़मीन।

अगर मिस्री बग़ावत को पेशेनज़र रखें तो इसकी शुरुआत महज़ एक इंटरनेट बिगुल से हुई थी, जो बाद में काहिरा, इस्कंदरिया और स्वेज से आगे बढ़कर पूरे मिस्र में बजने लगा। काहिरा की तहरीर स्क्वेयर इसका सेंटरस्टेज बनी, जिस पर लड़ी गई 18 दिन की जंग ने मुबारक से उनका ताज छीन लिया। मगर, असल में तहरीर की जंग में अवाम के साथ था एक ऐसा संगठन जिसे 30 साल से मुबारक ने दबा-कुचल रखा था। ये है- अल इख्वान अल मुस्लिमीन यानी मुस्लिम ब्रदरहुड। इख्वान ने पर्दे के पीछे रहकर मिस्री अवाम को हौसला दिया और एक प्लेटफॉर्म पर खड़े होने की ताकत दी। यहां तक कि वह वक्त भी आया जब होसनी मुबारक ने अपनी गद्दी बचाने की आखिरी कोशिश में अल इख्वान अल मुस्लिमीन को बातचीत की टेबल पर बुलाया। मगर तब तक देर हो चुकी थी।

होसनी मुबारक की हुकूमत ने मुल्क को निचोड़कर रख दिया था। मिडिल ईस्ट में अमन का वास्ता देकर वह शाहों की तरह बर्ताव करता रहा। लेकिन मुस्लिम ब्रदरहुड का दामन भी पाक नहीं था। उस पर एक प्रधानमंत्री और एक राष्ट्रपति के खून का दाग़ था। राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या के बाद मुबारक ने सत्ता हासिल की और आते ही पहला काम किया मुस्लिम ब्रदरहुड पर पाबंदी। इख्वान से जुड़ा शख्स जब और जहां मिला, कैद में डाल दिया गया। बहुतों का सफाया कर दिया गया और बड़ी तादाद में ब्रदर्स मिस्र छोड़कर भाग गए। कुछ अंडरग्राउंड हो गए। 30 साल बाद वो होसनी मुबारक को चुनौती देने के लिए फिर पूरी ताकत से उठे और उन्हें साथ मिला आम मिस्री का। दोनों का मकसद एक था और दुश्मन एक।

1928 में एक एलीमेंट्री टीचर हसन अल बन्ना के दिमाग की उपज था अल इख्वान अल मुस्लिमीन। खिलाफत के खात्मे के बाद पैदा हुए निर्वात को भरने के लिए ऐसे निज़ाम की ज़रूरत थी- जो पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक झंडे के नीचे खड़ा कर सके और खलीफा जैसी मरकज़ी ताकत और अहमियत हासिल कर सके। मुस्लिम ब्रदरहुड का नारा था- इस्लाम इज़ सॉल्यूशन.. यानी इस्लाम ही अकेला हल है। अल इख्वान को मुसलमानों की मज़हबी, समाजी और सियासी जरूरतों के लिए लाइटहाउस के बतौर देखा गया। जिसकी चाहत थी दुनिया में सुन्ना और शरिया का राज। सिर्फ 20 साल में ही मुस्लिम ब्रदरहुड पूरे मध्यपूर्व में फैल गया। ये कोई संगठन नहीं बल्कि एक आंदोलन था। मज़हब और एजुकेशन के साथ-साथ सियासत में भी उन्होंने पैठ बना ली।

मिस्र पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अल इख्वान ने जंग छेड़ दी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इनके संबंध नाज़ियों से भी रहे, जिसका पता काफी दस्तावेज़ों से चलता है। यहां तक कि मुस्लिम ब्रदरहुड ने हिटलर की आत्मकथा का अरबी में तर्जुमा कर बंटवाया था जिसने यहूदियों और पश्चिमी दुनिया के देशों के खिलाफ मुसलमानों के मन में ज़हर भरने का काम किया 1948 में अरब-इज़रायल युद्ध में हार से भी अल इख्वान तिलमिला गया। उसने मिस्री सरकार पर आरोप लगाया कि वो इज़रायल से हाथ मिला चुकी है। खुद मुस्लिम ब्रदरहुड ने इज़रायल के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और पूरे मिस्र में दहशतगर्दी कायम कर दी। मिस्री सरकार ने अल इख्वान पर पाबंदी लगा दी। दिसंबर 1948 में मिस्री प्रधानमंत्री महमूद फहमी नूकराशी की हत्या कर दी गई। फिर खुद इख्वान का जन्मदाता बन्ना 1949 में सरकारी एजेंट्स के हाथों मारा गया। अपने जन्म के वक्त हिंसा के खिलाफ रहे अल इख्वान अल मुस्लिमीन के जन्मदाता की मौत ख़ुद गोली से हुई।

मिस्र में 1952 की क्रांति के बाद नासिर ने सत्ता हाथ में ली। मुस्लिम ब्रदरहुड ने इस क्रांति का समर्थन किया क्योंकि उसे लगा कि राजशाही ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पिट्ठू थी। मुस्लिम ब्रदरहुड को यकीन था कि अब मिस्र में इस्लामी राज कायम होगा.. लेकिन राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद 1954 में नासिर की हत्या की कोशिश की गई। नतीजतन 1954 से लेकर 1970 तक नासिर सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहुड को पूरी तरह बिखेर दिया। इसके सदस्यों के खिलाफ बाकायदा दमन का सिलसिला चला। फांसी और गिरफ्तारियों के दौरान बहुत से ब्रदरहुड सदस्य जॉर्डन, सीरिया, सऊदी अरब और लेबनन भाग गए। नासिरी दमनचक्र में सैयद कुत्ब भी गिरफ्तार हुआ, जो अल इख्वान के अख़बार का संपादक था। जेल में रहते हुए कुत्ब ने मुस्लिम ब्रदरहुड के लिए इंटेलेक्चुअल आधार तैयार किया- 30 खंडों में कुरान पर कमेंट्री फी ज़िलाल अल कुरान और माइलस्टोंस यानी मआलिम फी अल तारीक। कुत्ब को इराक के प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की वजह से रिहा कर दिया गया लेकिन अपनी किताब माइलस्टोंस की वजह से उसके खिलाफ फिर मुकदमा दर्ज हुआ और उसे मौत की सजा सुना दी गई। माइलस्टोंस वो किताब है जिसमें नासिर सरकार को इस्लामी चरमपंथ की बू रही थी।

नासिर के बाद अनवर अल सादात ने मिस्र की हुकूमत संभाली और शरिया लागू करने का आश्वासन देकर मुस्लिम ब्रदरहुड सदस्यों को रिहा कर दिया। मगर अनवर अल सादात के साथ अल इख्वान अल मुस्लिमीन के रिश्ते बार-बार बन-बिगड़ रहे थे क्योंकि 1979 में सादात ने इजरायल के साथ अमन का करार कर लिया। अल इख्वान अल मुस्लिमीन का भरोसा डोल गया और 1981 में अनवर अल सादात की हत्या कर दी गई।

इख्वान अल मुस्लिमीन का मकसद कभी उसकी आंखों से ओझल नहीं हुआ। जरूरत के मुताबिक वो दहशतगर्दी को हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहा। साथ-साथ मिस्र की सियासी ज़मीन पर वह अपने लिए मक़बूलियत तैयार करता रहा। जब होसनी मुबारक ने मुल्क की बागडोर संभाली तो मुस्लिम ब्रदरहुड को उनसे कोई उम्मीद बाकी नहीं रह गई थी।
मुबारक के सत्ता संभालते ही अल इख्वान ने सियासत के गलियारों में पहुंचने की कोशिशें शुरू कर दी थीं। चूंकि मिस्र में धार्मिक पार्टियों के चुनाव लड़ने पर रोक है इसलिए उसने निर्दलीयों के बतौर पार्लियामेंट में जगह बनाई। जाहिर है इस ऐसे में ब्रदरहुड को संसदीय सुरक्षा हासिल हो गई और मीडिया तक उनकी पहुंच आसान हो गई। तकनीकी तौर पर पाबंद होने के बावजूद अल इख्वान अल मुस्लिमीन संसद में एक ताकत बनकर होसनी मुबारक के सामने खड़ा हो गया। इस वजह से सरकार कभी उससे निपटने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी। 2005 के चुनावों में उनकी ताकत देखकर खुद मुबारक सरकार इतना चौंकी कि उसने उनके खिलाफ दमन का नया चक्र चला दिया क्योंकि ब्रदरहुड ने देश की पार्लियामेंट में 20 फीसदी जगह हासिल कर ली थी।

मुस्लिम ब्रदरहुड से डरने की जरूरत!
दुनियाभर में लाखों समर्थकों और हमदर्दों को समेटे इख्वान अमेरिका को दूसरे शिया ईरान की तरह डराता है। अमेरिकी नीति निर्माताओं और सियासी जानकारों ने मिस्री क्रांति के पीछे लोकतंत्र विरोधी ताकतों के हाथ होने की भविष्यवाणी की थी। उनका कहना था कि मिस्र में थियोक्रेसी यानी धर्मराज्य दूर नहीं है। फिलहाल अल इख्वान अल मुस्लिमीन ने सत्ता में भागीदारी से इनकार किया है लेकिन मध्यपूर्व में सत्ता संतुलन कायम रखने वाले अमेरिका के सामने सवाल है कि वो ऐसी लोकतांत्रिक क्रांति को कैसे देखे जिसके पीछे थियोक्रेसी के हिमायती मुस्लिम ब्रदरहुड का हाथ रहा है।

हालांकि घरेलू और विदेश नीतियों को लेकर इख्वान की पोजीशन काफी हद तक जायज़ है। मुस्लिम ब्रदरहुड ने भी पिछले कुछ वक्त से अपने ऐतिहासिक नज़रिए से पीछा छुड़ाने की कोशिश की है। एक वक्त था जब इख्वान के नेता ततबीक-अल-शरिया यानी शरिया लागू करने की वकालत करते रहते थे। लेकिन आज उनकी शब्दावली बदल गई है। अब वो थियोक्रेसी नहीं बल्कि इस्लामिक आदर्शों की रोशनी में खड़े होने वाले नागरिक और लोकतांत्रिक राज्य के समर्थक बन चुके हैं।

ये भी सच है कि ब्रदरहुड कभी भी उदारवादी नहीं होगा। अल इख्वान अल मुस्लिमीन का नजरिया काफी हद तक ऐसा है, जिससे अमेरिका ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों को परेशानी महसूस होती है। चाहे वो औरतों के हक की बात हो या लिंगभेद की। हालांकि अमेरिकी दिक्कत सिर्फ ये सोच नहीं है बल्कि ये है कि मिडिल ईस्ट में अमेरिका की सैन्य सोच कमज़ोर पड़ जाएगी। सवाल ये है कि क्या मुस्लिम ब्रदरहुड अमेरिका के क्षेत्रीय हितों के खिलाफ काम करेगा। क्या मिस्र और इज़रायल के बीच चला रहा अमन का करार उलट जाएगा। क्या अल इख्वान अल मुस्लिमीन को अपने सियासी स्टैंड की कीमत पर मिस्र को मिल रहे बिलियंस डॉलरों का नुकसान मंज़ूर है।

मिस्र में जम्हूरियत की तस्वीर अभी साफ नहीं है और इसकी कोई गारंटी भी नहीं। क्योंकि मिस्र में अल इख्वान अल मुस्लिमीन को दरकिनार कर जम्हूरियत की बात सोचना मुमकिन नहीं। वैसे भी अरब दुनिया में जम्हूरियत और सियासी इस्लाम एक दूसरे में गुंथे सवाल हैं। दोनों जुदा नहीं किए जाते और किए जा सकते हैं। मिस्र में बनने वाली कोई भी सरकार, जिसमें इस्लामिस्ट नहीं हैं मिस्रियों की नुमाइंदगी नहीं करेगी और उनकी नज़र में ग़ैरक़ानूनी होगी। दूसरी तरफ मिस्र को एकजुट रखने के काम में मुस्लिम ब्रदरहुड का रोल कितना है, वह साबित कर चुका है।

अल-कायदा को फायदा या नुकसान?
तहरीर स्क्वेयर में मिस्रियों की बहादुरी से भरी तस्वीरें ओसामा के लिए ख़तरे का सबब हैं तो मौका भी हैं। अल कायदा के दिल में मिस्र की खास जगह रही है क्योंकि उसके कई मास्टरमाइंड उसे इसी ज़मीन से मिले हैं। इनमें से कई ने ओसामा की टीम में जगह पाने से पहले मुबारक की हुकूमत से दो-दो हाथ किए हैं। बिन लादेन का दाहिना हाथ आयमन अल जवाहिरी इस्लामिक ग्रुप के साथ साथ ईजिप्शियन इस्लामिक जिहाद जैसे ऑर्गनाइज़ेशन इसी जमीन से चलाता रहा है। जवाहिरी के जिहादियों ने 1990 में मुबारक को एक निरंकुश शासक का खिताब दिया था और ईसाइयों, धर्मनिरपेक्ष मिस्रियों और विदेशी सैलानियों के साथ-साथ सरकारी फौजों के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था। ये बात अलग है कि दशक का अंत होते-होते मुबारक ने बेरहमी से इन्हें कुचल दिया था। कुछ बाद में जाकर ओसामा के लड़ाकों से मिल गए। आइडियोलॉजी के स्तर पर इस्लामिक जिहाद, इस्लामिक ग्रुप और अल कायदा के बीच मतभेद रहे लेकिन जिहादी हमलों का सिलसिला चलता रहा। मसलन, शर्म अल शेख में 2005 का हमला, जिसमें 88 लोगों की मौत हुई थी।

मुबारक के जाने के बाद अब अल कायदा के सामने कुछ मुश्किलें दरपेश हैं। इनमें पहली है मुस्लिम ब्रदरहुड। अलकायदा के कई नेता इसी की उपज रहे हैं लेकिन आज दोनों एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। अल कायदा 1978 से 82 के बीच सीरिया के खिलाफ चले मुस्लिम ब्रदरहुड के खूनी संघर्ष का विरोध करता रहा है। दूसरी तरफ ब्रदरहुड के थियोलॉजियन सैयद कुत्ब जैसे लोग अल जवाहिरी के आदर्श रहे हैं। अपनी किताब ' बिटर हार्वेस्ट' में जवाहिरी ने मुस्लिम ब्रदरहुड की इस बात के लिए मज़म्मत की है कि उसने होसनी मुबारक के निरंकुश शासन के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल नहीं किया और मुख्यधारा की राजनीति में हिस्सा लेने की कोशिश की। इज़रायल के खिलाफ लड़ रहा फिलिस्तीनी ग्रुप हमास भी मुस्लिम ब्रदरहुड से ही उपजा है, जिसने गाज़ा में अल कायदा को काफी नुकसान पहुंचाया है और बदले में अल कायदा के कोप का भाजन बना है।

अलकायदा के सामने दूसरी चुनौती हैं वो मिस्री जो इस्लाम के नाम पर नहीं बल्कि मुबारक के अत्याचारी शासन के खिलाफ तहरीर स्क्वेयर में इकट्ठे हुए। लोकतंत्र विरोधी और बंदूक़ की बदौलत सत्ता हासिल करने के हिमायती अल कायदा के इंटेलीजेंसिया को डर है कि ऐसे लोगों पर खड़ी सरकारें असल में इंसान की इच्छा को ख़ुदा की इच्छा से ऊपर रखने वाली होंगी और आखिर में गैरइस्लामी कानून-कायदों को जन्म देंगी।

फिर भी मुबारक विरोधी बग़ावत अल कायदा के लिए कुछ मौके भी लाई है। मसलन मुबारक की विदाई के दौरान जिस फौज ने मुल्क की सीमाओं से जिहादियों की घुसपैठ रोकी थी, अब उसकी पकड़ ढीली पड़ गई है। फौज खुद जनता के गुस्से का शिकार बनेगी क्योंकि उसने प्रदर्शनकारियों पर ज़ोर-ज़बर किया था। जाहिर है अल कायदा अराजकता का फायदा उठाने की कोशिश करेगा। अफगानिस्तान, इराक, पाकिस्तान और सोमालिया में अल कायदा ऐसे मौकों का फायदा उठा चुका है।
दूसरी तरफ अगर मुस्लिम ब्रदरहुड सरकार का हिस्सा बनी तो वह कमोबेश मिस्र के इस्लामीकरण की आवाज उठाएगी जो एक तरह से अल कायदा के मिशन को पूरा करेगा। अगर मुस्लिम ब्रदरहुड सेना और नई सरकार की आंख में किरकिरी बनी तो वो मिस्री नौजवानों में रेडिकल आवाज का काम करेगी और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काएगी।

इसलिए मुबारक के बाद मिस्र में सत्ता का सफर कांटों भरा है क्योंकि अल कायदा को एक लोकतांत्रिक और स्थिर मिस्र से खतरा है। तहरीर स्क्वेयर में खड़े मिस्रियों की तस्वीरें आम मुसलमानों को उम्मीद देती हैं कि केवल जिहाद नहीं स्थिर लोकतांत्रिक सरकारें भी उन्हें अच्छी जिंदगी दे सकती हैं।

नदी

क्या नदी बहती है  या समय का है प्रवाह हममें से होकर  या नदी स्थिर है  पर हमारा मन  खिसक रहा है  क्या नदी और समय वहीं हैं  उस क्षैतिज रेखा पर...