17/8/20

टूटा पत्ता

टूटा हुआ एक पत्ता 

कितनी देर तलक टिक पाएगा

शाम ढलेगी, रात गहराएगी

तुंद हवा कहीं उसे ले जाएगी

मचलेगा वो, सहमेगा वो और बहुत रोएगा वो

पर बेचैनी उसे टूटकर बिखराएगी

नसीम चूमेगी उसे जब तो

होश की दहलीज़ पर

उसे कोई थपथपाएगा

सुबह होगी जब किसी दरख्त तले

नींद टूटेगी, मुहब्बत धूप से सहलाएगी

साए पड़ेंगे शाम के यादों के झुरमुट तले

इस शहर से उस शहर वो भागेगा

पहुंच न पाएगा

दरख़्तों से झांकते नए पत्ते

उसे चिढ़ाएंगे, डराएंगे

बारिशें होंगी, बूंदे उसे ले जाएंगी

फ़लक का दामन समेटे वो दूर से आएंगी

जीने की ललक में इक बार वो

फिर हरा हो जाएगा

खारी हवा लेकिन उसे फिर ज़र्द कर जाएगी

उंगलियों में गिरेगा वो किसी की

और चुपचाप सो जाएगा

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