हम भी डीकंपोज़ होते हैं..
कुछ
औज़ार, बेजान जिस्म, एक जोड़ा चश्मदीद आंखें
अकड़ी
हुई सख़्त नीली सी उंगलियां, सर्द
इसे
डीकंपोज़ होने में अभी वक़्त लगेगा
लाशें
एकदम फ़ना नहीं होतीं
डॉक्टर
ने साफ़ कह दिया था.
खुदकुशी,
क़त्ल, हादसा, बीमारी
हर मौत
दूसरी से अलग है
हर
तरीक़े का जवाब भी जिस्म अपने ढंग से देता है
मगर
हमारे
वक़्त में मौत क़ुदरत के हाथ नहीं
हम ही
हम को छीन लेते हैं
कुछ
हादसे छीनते हैं हमें और
बहुत से
अस्पतालों के ख़ामोश कमरों और बेज़ुबां दीवारों के बीच
बीमारियों
से शिकस्तज़दा होकर पहुंचते हैं
एक सफ़र
है ये बस
सड़कर
हम इसी दुनिया में बिखरते हैं
कहते
हैं कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती
सिर्फ़
रूपांतरित होते हैं
जिस्म
भी पानी, राख, आवाज़ और आकाश में तब्दील होता है
मौत के
दरवाज़ा खटखटाते ही जिस्म ख़ुद को पचाता है
बुझते
हुए दिल के साथ ही हम लाश नहीं बनते
जिस्म को
रवां रखने वाले सेल पहले ऑक्सीजन से महरूम होते हैं
टूटकर रगों में पिघलते हैं और फिर हमारे एक-एक अंग अंदर ही अंदर
ख़ुद को
पचाने लगते हैं
धमनियां
फटती हैं, शिराएं चरमराती हैं
ख़ून की
गर्मी फ़ना होकर उसे जमाने लगती है
बदन
अकड़ता है, पहले पलकें, जबड़े और हमारी गर्दन फिर मांसपेशियां
करोड़ों
बैक्टीरिया भीतर और बाहर क़ब्ज़ा जमाकर
महाभोज
के लिए पहुंच चुके होते हैं
हमारी
आंतें कभी सब कुछ पचाती थीं
अब
उन्हें केमिकल और बैक्टीरिया पचाएंगे
आंतें,
फिर लिवर और इसके बाद दिल और आख़िर में दिमाग़
हर
टुकड़ा वापस क़ुदरत को मिलेगा
ज़िंदगी
के स्रोत में मिलेगा
पेट की
जगह मशरूम उगेंगे
जिस्म
को खड़ा करने वाली हड्डियां खाल को छोड़ देंगी
ख़ूबसूरती
के तमाम निशान मिटा दिए जाएंगे
त्वचा
का रंग लाल से नीला और नीले से धूसर होगा
इस
काली-हरी खाल से अब ख़ुशबू नहीं आती
सड़ते
हुए बदन से अब हवा बोझिल होती है
कीड़ों
के घोंसले बन चुके हैं, गिद्ध आमंत्रित हैं
मक्खियां
इस सड़ते जिस्म को अपना आशियाना बनाएंगी
अंडे
देंगी और अपना परिवार शुरू करेंगी
उन्हें
ये गंध और स्वाद पसंद है
मक्खियां
और उनके बच्चे यहां तब तक रहेंगे
जब तक
ये लाश उन्हें भोजन देती रहेगी
उनके
रहने से ये जिस्म गर्म रहेगा
मगर
इसकी तपिश वो नहीं होगी जो इसके चलते-फिरते हुआ करती थी
लाश के
नीचे धरती का रंग बदल रहा है
मिट्टी पर केमिकल असर छोड़ चुके हैं
लाश का
आख़िरी सुबूत ये मिट्टी का द्वीप होगा,
जिस पर
वो गिराई गई थी
बेहद
उर्वर और ज़हरीली
ये
द्वीप अपने आसपास की हरियाली को निगल जाएगा
बैक्टीरिया
और कीड़ों का घर अब जल्द ही कुछ अदद हड्डियों में
तब्दील
होने वाला है
मगर इसी
के साथ आसपास का माहौल भी मरेगा
गलकर
सड़ने का समय है
क़ुदरत
की पाचन शक्ति काफ़ी तेज़ है
हम
टूटते हैं, बिखरते हैं और रिसाइकिल होते हैं
राख
में, धूल में, पानी में, ज़मीन में, हवा में
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