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या समय का है प्रवाह
हममें से होकर
या नदी स्थिर है
पर हमारा मन
खिसक रहा है
क्या नदी और समय वहीं हैं
उस क्षैतिज रेखा पर
और बह रहे हैं हम
क्षितिज की ओर
ख़ाली दिमाग़ की चेमगोइयां
डूबती हुई ज़िंदगी के मुहाने पर
टूटा हुआ एक पत्ता
कितनी देर तलक टिक पाएगा
शाम ढलेगी, रात गहराएगी
तुंद हवा कहीं उसे ले जाएगी
मचलेगा वो, सहमेगा वो और बहुत रोएगा
वो
पर बेचैनी उसे टूटकर बिखराएगी
नसीम चूमेगी उसे जब तो
होश की दहलीज़ पर
उसे कोई थपथपाएगा
सुबह होगी जब किसी दरख्त तले
नींद टूटेगी, मुहब्बत धूप से सहलाएगी
साए पड़ेंगे शाम के यादों के झुरमुट
तले
इस शहर से उस शहर वो भागेगा
पहुंच न पाएगा
दरख़्तों से झांकते नए पत्ते
उसे चिढ़ाएंगे, डराएंगे
बारिशें होंगी, बूंदे उसे ले जाएंगी
फ़लक का दामन समेटे वो दूर से आएंगी
जीने की ललक में इक बार वो
फिर हरा हो जाएगा
खारी हवा लेकिन उसे फिर ज़र्द कर
जाएगी
उंगलियों में गिरेगा वो किसी की
और चुपचाप सो जाएगा
मेरे पैरों की ही कुव्वत थी कि मैं बिजली की रफ़्तार से जंगलों, नदियों,
पहाड़ों और मैदानों को पार कर सकता था. और आपको मेरी इन सुडौल टांगों और मज़बूत
जिस्म की ज़रूरत थी.
जब आपके उपमहाद्वीप में
संस्कृत जैसी ज़बान जन्मी, तो हमें उसमें अश्व कहा गया. अश का मतलब था तेज़. रोमन
हमें एसर कहते थे. बेशक हमारे पास लफ़्ज़ नहींस लेकिन आपकी ज़ुबान में हम रफ़्तार
का पर्याय थे, इन्हीं खुरों और टांगों की बदौलत, जिन्हें आज आप तोड़ रहे हैं.
आपने हमें धर्मयुद्धों में
झोंका, क्योंकि आपको अपने भगवान की श्रेष्ठता साबित करनी थी. पहली बार जब हम आप क्रुसेड
में शामिल हुए, तो लाखों साल के इतिहास में यह पहला मौक़ा था, जब आपने एक लाख से
ज़्यादा घोड़ों के साथ फ़लस्तीन की तरफ़ सैकड़ों मील तक मार्च किया, ख़तरनाक
पहाड़ों, दर्रों, मैदानों का सफ़र. शायद आपको जानकर ताज्जुब हो कि हम इतने
सख़्तजान थे कि हममें सिर्फ़ कुछ सौ को ही मौत ने छीना, आपकी कैज़ुअल्टी हमसे
ज़्यादा थीं.क्या नदी बहती है या समय का है प्रवाह हममें से होकर या नदी स्थिर है पर हमारा मन खिसक रहा है क्या नदी और समय वहीं हैं उस क्षैतिज रेखा पर...