नरक को भी चाहिए नायक!!
जब आप द हर्ट लॉकर देख रहे हों तो ख्याल रहे कि ये कोई वॉर मूवी नहीं, न किसी आम युद्ध की कहानी है.. ये कहानी है दुनिया के तकरीबन सभी देशों में चल रहे छोटे-छोटे युद्धों की..जो रोज़ इराक, अफगानिस्तान और कश्मीर की डेटलाइनों से आपकी नजरों के सामने से गुजरती हैं..जहां शायद मौत और जिंदगी एक दूसरे के सबसे करीब हैं.. कैथरीन बिगेलो की कामयाबी ये है कि वो मौत के खिलाफ संघर्ष में डूबी इस जिंदगी का एक हिस्सा आप तक पहुंचा पाई हैं.. और शायद इसका सबसे बड़ा कारण है एक पत्रकार की आंख.. जो फिल्मकार की तरह सच को टेंटेड ग्लास से नहीं देखती.. यानी द हर्ट लॉकर दरअसल कैथरीन बिगेलो की नहीं जितनी मार्क बोआल की कामयाबी है..
पत्रकार से स्क्रिप्टराइटर बने मार्क बोआल कुछ साल पहले इराक में अमेरिकी सैनिकों के दस्ते के साथ गए थे.. यहां अपने खौफनाक तजुर्बे ने उन्हें इसे फिल्म स्क्रिप्ट में तब्दील करने की प्रेरणा दी..इसलिए मार्क बोआल का उगला सच काफी कच्चा है.. एकदम असली और काफी करीब से देखा गया..
द हर्ट लॉकर इराक में तैनात अमेरिकी सैनिकों के जरिए बदले हुए युद्धक्षेत्रों और इस लड़ाई को लड़ने वाले एक पक्ष की बदली हुई मानसिकता बताती है.. वो लोग जो इस दुनिया में सबसे खतरनाक काम को अंजाम दे रहे हैं.. इस गैररस्मी युद्ध के बीचोबीच वो मौत के परवाने बमों को खोज रहे हैं और उन्हें डिफ्यूज करने में जुटे हैं.. और खास बात ये सैनिक उस देश में लड़ रहे हैं, जहां उन्हें स्थानीय समर्थन हासिल नहीं.. इसीलिए द हर्ट लॉकर ऐसे आम इराकी चश्मदीदों की तस्वीर भी खींचती है, जिन्हें अपनी जमीन पर हो रहे मौत के नाच से कोई सरोकार नहीं लगता..वो आपको कई सीन में एकदम निर्लिप्त दिखेंगे, जिन्हें अमेरिकी बम निरोधक दस्ते से कोई हमदर्दी नहीं है..उनकी कार्रवाइयों को लेकर वो खामोश हैं या उनके खिलाफ खड़े नजर आते हैं.. वो महज तमाशबीन चेहरों की तरह पेश किए गए हैं या खौफजदा लोगों की तरह.. फिल्म के किरदार उनसे संवाद नहीं करते..
फिल्म में कोई सैनिक अपने मुंह से किसी तरह की राजनीतिक बयानबाजी नहीं करता..इस बात को प्रचारित भी किया गया है कि कैथरीन बिगेलो और मार्क बोआल ने कहीं भी किसी तरह के राजनीतिक झुकाव को फिल्म में नहीं आने दिया है.. हालांकि फिल्म के ट्रीटमेंट में ये चीजें झलक ही गई हैं..
बम निरोधक दस्ते का नया सार्जेंट जेम्स अपने काम के खतरों से बिल्कुल बेपरवाह है और ये बात उसके दोनों साथियों सैनबॉर्न और एलरिज को पचती नहीं.. जो बम डिफ्यूज करने के दौरान उसे कवर देते हैं.. जेम्स का एक और चेहरा भी है उसकी बीवी और बच्चा जिन्हें छोड़कर वो जंग के मैदान में खड़ा है.. लेकिन वो उनका ख्याल अपने ऊपर हावी नहीं होने देता.. जबकि खतरनाक स्नाइपर एलरिज के सब्र का बांध एक दिन टूट जाता है..
हो सकता है कि द हर्ट लॉकर कुछ साल बाद एक दस्तावेज की तरह देखी जाए..जो शायद ये बात सबसे अच्छे ढंग से बता सकेगी कि इराक में अमेरिकी मौजूदगी कितनी खतरनाक साबित हुई थी..लेकिन अगर कोई इसमें आइडियोलॉजी खोजना चाहे तो वो नहीं मिलेगी..दूसरी बात, ये फिल्म जंग की मौजूदा शक्ल पर पहले दर्जे का अध्ययन मैटीरियल उपलब्ध कराएगी. आप ये भी कह सकते हैं िक द हर्ट लॉकर में उन कई सालों का परिप्रेक्ष्य शामिल है, जिन्हें अभी अमेरिका और दुनिया के लिए गुजरना बाकी है.. शायद सच को वक्त से पहले दर्ज करा पाने में फिल्म कामयाब मानी जा सकती है..
हॉलीवुड के इराक से वहां मौजूद सैनिकों की रोजमर्रा जिंदगी, उनकी तनावपूर्ण हकीकत और मुश्किलें अब तक सामने नहीं आई थीं, लेकिन द हर्ट लॉकर इन्हें एकदम केंद्र में ले आई है..इसलिए अगर फिल्म का मूड आपको बेहद खराब लगता है, तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि युद्ध हमेशा ही ऐसा होता है..एक नरक की तरह.. लगातार तनाव से भरे 130 मिनट में हो सकता है कि आप पूरी फिल्म न देखना चाहें..लेकिन यही इसकी कामयाबी भी है.. दुनिया के बहुत से देश जहां अब आमने सामने की लड़ाई नहीं होती..हमले घात लगाकर िकए जाते हैं, वहां कोई दूसरा विकल्प नहीं है..आप जंग के इस माहौल के बीच जश्न नहीं मना सकते, आराम नहीं कर सकते..
द हर्ट लॉकर के साथ एक दिक्कत भी है.. फिल्म अपने हर सीन में काफी परफेक्ट लगती है.. खूबसूरती से बुने गए मूवमेंट्स, लेकिन पूरी फिल्म आपको अचानक अधूरेपन के साथ छोड़ देती है.. कैथरीन बिगेलो शायद जानती हैं कि इस लड़ाई का कोई अंत नहीं, इसलिए एक बटालियन से दूसरी बटालियन तक जेम्स आते रहेंगे और अपना काम करके इराक से वापस जाते रहेंगे.. चाहे अपने कदमों पर या ताबूत में..
फिल्म शुरू होती है स्क्रीन पर आने वाली एक लाइन से - "The rush of battle is a potent and often lethal addiction, for war is a drug.".. और कैथरीन बिगेलो ने फिल्म के अंत में इस लाइन को सार्थक कर दिया है.. पूरी फिल्म एक बटालियन के इर्दगिर्द घूमती है.. कुछ मौकों को छोड़कर फिल्म बटालियन के सैनिकों की मानसिक अवस्था से भी ज्यादा नहीं जूझती.. कैथरीन ने इस बात का ख्याल रखा है कि वो बटालियन की कार्रवाइयों तक ही सीमित रहें..उनका मकसद है कि बम निरोधी दस्ते को जो काम मिला है, वह उसे बखूबी अंजाम दे रहा है..बम खोजना और उन्हें डिफ्यूज करना उसका नशा है..उसके िलए वॉर इज़ अ ड्रग.. यही बात फिल्म डायरेक्टर का मिशन स्टेटमेंट भी है - इराक में अमेरिकी सैनिक अपना काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं, क्योंकि उनके लिए वहां लड़ना उनका एक काम है..कुछ हद तक मशीनी अंदाज़ में.. वो मानवता, राजनीति, समाज और युद्ध के गंभीर सवालों से जानबूझकर कन्नी काट गई हैं..
इराक के राजनीतिक पक्ष, आम जिंदगी और समाज को पूरी तरह दूसरी फिल्मों के लिए छोड़ दिया गया है.. इस नजरिए से ये फिल्म अधूरी लगती है.. तो क्या ऑस्कर में इतनी अधूरी फिल्म को सबसे बेहतरीन फिल्म का दर्जा मिलना उचित लगता है.. मुमकिन है कि कैथरीन बिगेलो के पूर्व पति जेम्स कैमरॉन की फिल्म अवतार समेत इस साल कोई इतनी ताकतवर फिल्म न हो, जो एकेडमी की जूरी को जंची हो..ज़ाहिर है ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रवाद के अंश को नवाज़ना उसे आसान लगा होगा.. खुद जेम्स कैमरॉन ने भी यही बात कही थी..
जेरेमी रेनर एक दशक तक सहायक किरदार करते रहे हैं, लेकिन द हर्ट लॉकर में उनके लीड किरदार ने उन्हें एकदम सबसे अलग खड़ा कर दिया है..अब तक उनकी छवि गंदे किरदार करने वाले अभिनेता की रही थी.. द हर्ट लॉकर के शूट पर ४९ डिग्री की गर्मी में ८५ पाउंड का बॉम्ब िडफ्यूजल सूट पहनना कोई आसान काम नहीं था.. रेनर का कहना था कि इस किरदार ने उन्हें अंदर तक बदलकर रख दिया है..
२००७ में फिल्म की शूटिंग हुई और २००८ में इसे इटली के थियेटरों में रिलीज किया गया..जून २००९ में ये अमेरिका पहुंची और इसके बाद २०१० में इसने ऑस्कर के लिए अपनी दावेदारी पेश की..९ अकेडमी अवॉर्ड्स में नामित होने के बाद इसे इस साल ६ अवॉर्ड्स मिले..और इसने अरबों डॉलर से बनी तकनीकी तौर से बेहद उन्नत फिल्म अवतार को पछाड़ दिया..एक रिकॉर्ड ये भी बना कि पहली बार एक महिला डायरेक्टर को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का सम्मान मिला.. किसी महिला ने पहली बार वॉर मूवी जॉनर में कदम रखा था..
अगर साफ कहें तो मार्क बोआल की कलम से निकली ये फिल्म दरअसल एक डॉक्यूड्रामा है, जो महज एक बटालियन की कहानी होने के बावजूद अपने थ्रिलिंग अनुभवों की वजह से आपको बांध लेने में कामयाब रहेगी.. और ये फिल्म देखने से लगता है कि अगर जंग इतनी खतरनाक और क्रूर है, नरक के बराबर है, तो दरअसल वहां भी नायकों की जरूरत है..
पत्रकार से स्क्रिप्टराइटर बने मार्क बोआल कुछ साल पहले इराक में अमेरिकी सैनिकों के दस्ते के साथ गए थे.. यहां अपने खौफनाक तजुर्बे ने उन्हें इसे फिल्म स्क्रिप्ट में तब्दील करने की प्रेरणा दी..इसलिए मार्क बोआल का उगला सच काफी कच्चा है.. एकदम असली और काफी करीब से देखा गया..
द हर्ट लॉकर इराक में तैनात अमेरिकी सैनिकों के जरिए बदले हुए युद्धक्षेत्रों और इस लड़ाई को लड़ने वाले एक पक्ष की बदली हुई मानसिकता बताती है.. वो लोग जो इस दुनिया में सबसे खतरनाक काम को अंजाम दे रहे हैं.. इस गैररस्मी युद्ध के बीचोबीच वो मौत के परवाने बमों को खोज रहे हैं और उन्हें डिफ्यूज करने में जुटे हैं.. और खास बात ये सैनिक उस देश में लड़ रहे हैं, जहां उन्हें स्थानीय समर्थन हासिल नहीं.. इसीलिए द हर्ट लॉकर ऐसे आम इराकी चश्मदीदों की तस्वीर भी खींचती है, जिन्हें अपनी जमीन पर हो रहे मौत के नाच से कोई सरोकार नहीं लगता..वो आपको कई सीन में एकदम निर्लिप्त दिखेंगे, जिन्हें अमेरिकी बम निरोधक दस्ते से कोई हमदर्दी नहीं है..उनकी कार्रवाइयों को लेकर वो खामोश हैं या उनके खिलाफ खड़े नजर आते हैं.. वो महज तमाशबीन चेहरों की तरह पेश किए गए हैं या खौफजदा लोगों की तरह.. फिल्म के किरदार उनसे संवाद नहीं करते..
फिल्म में कोई सैनिक अपने मुंह से किसी तरह की राजनीतिक बयानबाजी नहीं करता..इस बात को प्रचारित भी किया गया है कि कैथरीन बिगेलो और मार्क बोआल ने कहीं भी किसी तरह के राजनीतिक झुकाव को फिल्म में नहीं आने दिया है.. हालांकि फिल्म के ट्रीटमेंट में ये चीजें झलक ही गई हैं..
बम निरोधक दस्ते का नया सार्जेंट जेम्स अपने काम के खतरों से बिल्कुल बेपरवाह है और ये बात उसके दोनों साथियों सैनबॉर्न और एलरिज को पचती नहीं.. जो बम डिफ्यूज करने के दौरान उसे कवर देते हैं.. जेम्स का एक और चेहरा भी है उसकी बीवी और बच्चा जिन्हें छोड़कर वो जंग के मैदान में खड़ा है.. लेकिन वो उनका ख्याल अपने ऊपर हावी नहीं होने देता.. जबकि खतरनाक स्नाइपर एलरिज के सब्र का बांध एक दिन टूट जाता है..
हो सकता है कि द हर्ट लॉकर कुछ साल बाद एक दस्तावेज की तरह देखी जाए..जो शायद ये बात सबसे अच्छे ढंग से बता सकेगी कि इराक में अमेरिकी मौजूदगी कितनी खतरनाक साबित हुई थी..लेकिन अगर कोई इसमें आइडियोलॉजी खोजना चाहे तो वो नहीं मिलेगी..दूसरी बात, ये फिल्म जंग की मौजूदा शक्ल पर पहले दर्जे का अध्ययन मैटीरियल उपलब्ध कराएगी. आप ये भी कह सकते हैं िक द हर्ट लॉकर में उन कई सालों का परिप्रेक्ष्य शामिल है, जिन्हें अभी अमेरिका और दुनिया के लिए गुजरना बाकी है.. शायद सच को वक्त से पहले दर्ज करा पाने में फिल्म कामयाब मानी जा सकती है..
हॉलीवुड के इराक से वहां मौजूद सैनिकों की रोजमर्रा जिंदगी, उनकी तनावपूर्ण हकीकत और मुश्किलें अब तक सामने नहीं आई थीं, लेकिन द हर्ट लॉकर इन्हें एकदम केंद्र में ले आई है..इसलिए अगर फिल्म का मूड आपको बेहद खराब लगता है, तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि युद्ध हमेशा ही ऐसा होता है..एक नरक की तरह.. लगातार तनाव से भरे 130 मिनट में हो सकता है कि आप पूरी फिल्म न देखना चाहें..लेकिन यही इसकी कामयाबी भी है.. दुनिया के बहुत से देश जहां अब आमने सामने की लड़ाई नहीं होती..हमले घात लगाकर िकए जाते हैं, वहां कोई दूसरा विकल्प नहीं है..आप जंग के इस माहौल के बीच जश्न नहीं मना सकते, आराम नहीं कर सकते..
द हर्ट लॉकर के साथ एक दिक्कत भी है.. फिल्म अपने हर सीन में काफी परफेक्ट लगती है.. खूबसूरती से बुने गए मूवमेंट्स, लेकिन पूरी फिल्म आपको अचानक अधूरेपन के साथ छोड़ देती है.. कैथरीन बिगेलो शायद जानती हैं कि इस लड़ाई का कोई अंत नहीं, इसलिए एक बटालियन से दूसरी बटालियन तक जेम्स आते रहेंगे और अपना काम करके इराक से वापस जाते रहेंगे.. चाहे अपने कदमों पर या ताबूत में..
फिल्म शुरू होती है स्क्रीन पर आने वाली एक लाइन से - "The rush of battle is a potent and often lethal addiction, for war is a drug.".. और कैथरीन बिगेलो ने फिल्म के अंत में इस लाइन को सार्थक कर दिया है.. पूरी फिल्म एक बटालियन के इर्दगिर्द घूमती है.. कुछ मौकों को छोड़कर फिल्म बटालियन के सैनिकों की मानसिक अवस्था से भी ज्यादा नहीं जूझती.. कैथरीन ने इस बात का ख्याल रखा है कि वो बटालियन की कार्रवाइयों तक ही सीमित रहें..उनका मकसद है कि बम निरोधी दस्ते को जो काम मिला है, वह उसे बखूबी अंजाम दे रहा है..बम खोजना और उन्हें डिफ्यूज करना उसका नशा है..उसके िलए वॉर इज़ अ ड्रग.. यही बात फिल्म डायरेक्टर का मिशन स्टेटमेंट भी है - इराक में अमेरिकी सैनिक अपना काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं, क्योंकि उनके लिए वहां लड़ना उनका एक काम है..कुछ हद तक मशीनी अंदाज़ में.. वो मानवता, राजनीति, समाज और युद्ध के गंभीर सवालों से जानबूझकर कन्नी काट गई हैं..
इराक के राजनीतिक पक्ष, आम जिंदगी और समाज को पूरी तरह दूसरी फिल्मों के लिए छोड़ दिया गया है.. इस नजरिए से ये फिल्म अधूरी लगती है.. तो क्या ऑस्कर में इतनी अधूरी फिल्म को सबसे बेहतरीन फिल्म का दर्जा मिलना उचित लगता है.. मुमकिन है कि कैथरीन बिगेलो के पूर्व पति जेम्स कैमरॉन की फिल्म अवतार समेत इस साल कोई इतनी ताकतवर फिल्म न हो, जो एकेडमी की जूरी को जंची हो..ज़ाहिर है ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रवाद के अंश को नवाज़ना उसे आसान लगा होगा.. खुद जेम्स कैमरॉन ने भी यही बात कही थी..
जेरेमी रेनर एक दशक तक सहायक किरदार करते रहे हैं, लेकिन द हर्ट लॉकर में उनके लीड किरदार ने उन्हें एकदम सबसे अलग खड़ा कर दिया है..अब तक उनकी छवि गंदे किरदार करने वाले अभिनेता की रही थी.. द हर्ट लॉकर के शूट पर ४९ डिग्री की गर्मी में ८५ पाउंड का बॉम्ब िडफ्यूजल सूट पहनना कोई आसान काम नहीं था.. रेनर का कहना था कि इस किरदार ने उन्हें अंदर तक बदलकर रख दिया है..
२००७ में फिल्म की शूटिंग हुई और २००८ में इसे इटली के थियेटरों में रिलीज किया गया..जून २००९ में ये अमेरिका पहुंची और इसके बाद २०१० में इसने ऑस्कर के लिए अपनी दावेदारी पेश की..९ अकेडमी अवॉर्ड्स में नामित होने के बाद इसे इस साल ६ अवॉर्ड्स मिले..और इसने अरबों डॉलर से बनी तकनीकी तौर से बेहद उन्नत फिल्म अवतार को पछाड़ दिया..एक रिकॉर्ड ये भी बना कि पहली बार एक महिला डायरेक्टर को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का सम्मान मिला.. किसी महिला ने पहली बार वॉर मूवी जॉनर में कदम रखा था..
अगर साफ कहें तो मार्क बोआल की कलम से निकली ये फिल्म दरअसल एक डॉक्यूड्रामा है, जो महज एक बटालियन की कहानी होने के बावजूद अपने थ्रिलिंग अनुभवों की वजह से आपको बांध लेने में कामयाब रहेगी.. और ये फिल्म देखने से लगता है कि अगर जंग इतनी खतरनाक और क्रूर है, नरक के बराबर है, तो दरअसल वहां भी नायकों की जरूरत है..
टिप्पणियाँ
फिल्म देखने की उत्सुकता अपने चरम पर पहुँच चुकी है यह पढ़ कर...