भक्ति की लिमिट हम तोड़ें!

हिंदुस्तान में कुछ चीजें ऐसी हैं, जिनके पीछे वजह का पता लगाना काफी मुश्किल है। ऐसी ही एक चीज है देवी जागरण। जो हिंदू जागरण न कराए वह अधर्मी है। देवी का आशीर्वाद सिर्फ मंदिर जाने से हासिल नहीं होता। इसके लिए जप-तप से ज्यादा जरूरी है सामाजिक उद्घोष और यह उद्घोष तभी हो सकता है जब आप इसके लिए कुछ जतन करें। इसीलिए मां के भक्तों ने एक व्यवस्था निकाली है जिसे कहते हैं- जागरण।
जागरण के लिए जरूरी है पूरी रात जागना और जो इस दौरान सोते हैं उनके साथ देवी का सुलूक अच्छा नहीं होता। जागरण के जरिए नींद से दूर रहकर आशीर्वाद पाने के लिए खास व्यवस्था की गई है। अकेले कीर्तन और भजन से काम नहीं चलेगा। सिर्फ मंत्रपाठ तो आपको नींद की आगोश में ले जाएगा। इसलिए कीर्तनिए बुलाकर उनके प्रोफेशनल तरीके से भजन और गीत बजवाए जाते हैं। लेकिन अब सिर्फ ढोलक और हार्मोनियम पर भजन गले नहीं उतरते। उन्हें सुनने का माद्दा सबमें नहीं है। भजनियों ने इसका एक तोड़ निकाला और मुंबइया फिल्मी गानों की धुनों पर चढ़ा दी भक्ति के शब्दों की चादर। जाहिर है, जो निकलकर सामने आया, उसमें काफी संभावना थी।
पुराने गाने चलत मुसाफिर... की तर्ज पर बना भजन छोटी सी कन्या बनके आ गई रे शेरोवाली माता। मेरा बाबू छैल छबीला... की तर्ज पर सामने आया मां मुरादें पूरी कर दे मेरी हलवा बांटूंगी, दर पे तेरे आके जोत जलाके मैं तो नाचूंगी, या फिर अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है। फिल्म नागिन का गाना मन डोले, मेरा तन डोले... की तर्ज पर बना गीत सुन मैया रे, मेरी अर्जी रे, तू कर दे कुछ कमाल रे। ये तो कुछ हिंदी फिल्मी गीतों की बानगी है, जो यक ब यक याद आ गए हैं, लेकिन ऐसे सैकड़ों गीत हैं जिनकी धुनों पर भक्तिगीतों के बोल चढ़ाकर उनकी सीडी बाजार में आ चुकी हैं और लगातार ऐसे गीत इनमें जुड़ रहे हैं। (भक्ति बढ़ रही है और जागरण भी)
लेकिन एक सवाल है कि जब पुराने गाने खत्म हो जाएंगे तो कीर्तनिए क्या करेंगे। क्या वो सिर्फ एक ही माला के धागे (धुन) में बारंबार नए मोती (शब्द) पिरोते रहेंगे। मगर कब तक? आखिर बार-बार एक ही गीत की धुन लोग कब तक सुनें... वो ऊब गए हैं। जागरण भक्ति तालाब की काई की तरह हो गई है, उसमें नदी जैसा बहाव नहीं दिख रहा। ताज़गी का अहसास नहीं। ऐसे में नए गानों में संभावनाएं खोजी जा रही हैं। और कोशिश है कि देवी जागरण से नई पीढ़ी को जोड़ा जाए। लेकिन नई पीढ़ी को कोई पुराना गाना फूटी आंख नहीं सुहाता। इसलिए उनके लिए कुछ नए तजुर्बे किए गए हैं... मसलन... मैया-मैया चरणों को न छोड़ें, भक्ति-भक्ति की लिमिट हम तोड़ें... टैं टैणेन, टैंण, टैंण..... जय माता की... या फिर...मैया का हटा जो थोड़ा ध्यान, साला तू तो काम से गया....
इन भक्तिगीतों को सुनने के दौरान भक्त इतने रसमग्न हो जाते हैं...कि उन्हें खुद अपनी होश-खबर तक नहीं रहती। इनमें बात ही कुछ ऐसी है... (पढ़ें-इनकी धुन ही कुछ ऐसी है)... ग्रुप चाहे जो हो...अगले दिन के अखबार में खबर यही छपेगी... फलाने बैनर तले हुए भगवती जागरण में खूबसूरत गीतों पर सुबह तक श्रोता झूमते रहे। महिलाओं ने मैया-मैया चरणों को न छोड़ें गीत पर जमकर डांस किया...

टिप्पणियाँ

शरद कोकास ने कहा…
भई हमने एक दम नये रहमान के गानो की तर्ज़ पर गनेश जी के गीत तो सुन लिये है और वे भी ठेठ छत्तीसगढी मे जैसे "तेरा तेरा तेरा सुरूर.... की तर्ज़ पर तोला तोला तोला बन्दऊ गनेस.... " अब देवी के भी बन ही जायेंगे । जय हो..।
Udan Tashtari ने कहा…
:) सही है.
मुनीश ( munish ) ने कहा…
This form of "jagran'' is no where recommended in any scripture . No one calls anyone 'adharmi' not celebrating Jagran .Hinduism is world's most liberal religion plagued with wrong notions spread by ppl with vested interests.
Neeraj Bhushan ने कहा…
मुझे आपका ‘खाली दिमाग’ अच्छा लगा. सचमुच.

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