Love+Marriage= Divorce, Arrange+Marriage= Chaos!!
शादी इंसान को पूरी तरह बदलने का माद्दा रखती है.. उसकी दिनचर्या ही नहीं, उसकी किस्मत भी...एक का ख्वाब तो दूसरे का डर, तीसरे के लिए नफरत और चौथे के लिए कारोबार और किसी के लिए शायद बेड़ी...
कुछ भी हो, जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त.. अगर आप सही शख्स को चुनते हैं तो भी आपकी कामयाबी का फीसद बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला..क्योंकि मिस्टर और मिस परफेक्ट इस दुनिया में नहीं होते..परियों की कहानियों की बात अलग है.. सार्त्र का सूत्र Other is Evil.. हम इस मौके पर याद भी नहीं करना चाहते.. लेकिन कुछ साल बाद ही ये सच समझ आ जाता है क्योंकि गहराई के साथ इसे आप महसूस करना शुरू करते हैं जब आपकी जिंदगी में कोई आ जाता है.. प्यार में शादी और मां-बाप की मंजूरी के बाद शादी.. दो रास्ते हैं ईविल अदर को जिंदगी में लाने के..
इससे लोग इत्तिफाक रखें या नहीं मगर प्यार और शादी एक दूसरे के उल्टे लफ्ज हैं.. मगर फिर भी Love Marriage होती हैं..जाहिर है इन दोनों का अजीबोगरीब घालमेल करेंगे तो उम्मीदों का पहाड़ भी साथ आएगा.. और उम्मीदें पूरी नहीं होंगी तो कोर्ट के रास्ते खुले ही हैं.. ज्यादातर तलाक ऐसे ही जोड़ों के नाम हैं जिन्होंने फूल जैसे नाजुक शब्द को बाकायदा बेड़ी की तरह पहनने की कोशिश की..
Arranged और मां-बाप की सलाह पर की गई शादी में लड़के या लड़की की इच्छा का कोई महत्व नहीं.. ये परिवारों का सामंती और रूढ़िवादी नजरिया है.. ये नजरिया मानता है कि जिनकी शादी की जा रही है वो ढोर-डंगर हैं और उनका व्यक्तित्व तब तक विकसित नहीं होगा जब तक कि वो इस व्यवस्था के तहत नहीं आ जाते.. हमारे जैसे एक पुरुष प्रधान समाज में इसका बड़ा खमियाजा भुगतती हैं लड़कियां..Arranged Marriage के side effects उनकी जिंदगी पर साफ दिखते हैं.. सीता और सावित्री के इस देश में लड़की की इच्छा का मतलब ही है कि वो चरित्रहीन है...इसलिए न उनसे पूछा जाता है और न इसकी जरूरत ही समझी जाती है... इसमें भी लड़के और उसके घरवालों के सामने लड़की को इस तरह पेश किया जाता है.. मानो वो बिकाऊ माल हो.. बस फर्क इतना होता है कि एक बार में सिर्फ एक ही ग्राहक मौजूद होता है.. और उसे ही convince करना है...वीटो का बटन लड़के और उसके माता पिता के हाथ ही होता है..लड़की को पूरी तरह से निहार कर और नाप-तोल परखकर वो रद्द कर सकते हैं..
सदियों से हिंदुस्तानी समाज का ये दस्तूर बदस्तूर चल रहा है.. और चूंकि हम मानते हैं कि दोहराने से बुराई अच्छाई में बदल जाती है इसलिए हमने इसे स्वीकार कर लिया है.. जबकि इससे आपत्तिजनक कोई बात हो ही नहीं सकती कि माता-पिता शादी का फैसला कर सकते हैं.. चाहे फिर इसके जो परिणाम हों..समय और मूल्यों के अंतर के लिहाज से ही नहीं..व्यक्तिवादी सोच के लिहाज से भी...ये एकदम लचर सोच है.. मां-बाप का ऐसे फैसलों में पड़ने का मतलब है कि उनका चुनाव पूरी तरह ठीक नहीं हो सकता...पूरी तरह से अनजान घर में अर्धांगिनी या अर्धनारीश्वर बनकर प्रवेश करना एक सजा से कम नहीं.. और ऐसी शादियां अपनी कीमत भी चुकवाती हैं...दहेज के लिए हत्या के रूप में, परिवार के सदस्यों की बुरी नीयत का शिकार बनाकर या घर से निकाले जाने में.. या बेवजह छोड़े जाने तक.. मगर व्यवस्थित शादियों के समर्थक कहेंगे कि सफलता का प्रतिशत बहुत ज्यादा है.. ठीक है..लेकिन जो बेमन से शादियां ढो रहे होते हैं, क्या इन समर्थकों ने उनसे पूछा है...
हिंदुस्तानी मां-बाप लव मैरिज को जब तक अरेंज में न बदल लें, चैन नहीं लेते.. वो बेटे-बेटी के बीच थर्ड पार्टी जरूर बनना चाहते हैं..यानी ये शादियां भी arranged होकर खत्म होती हैं..ये लड़के-लड़की के बीच mutual understanding है, जो इसलिए मंजूर हो जाता है क्योंकि दोनों को एक-दूसरे का साथ मिल रहा होता है वो भी अपने-अपने मां-बाप के साथ, उनकी कीमत पर नहीं.. प्रेम विवाह में शादी दूसरी ऐसी गलती है.. जिसके शब्द ही आपस में मेल नहीं खाते.. एक रूहानी संवाद तो दूसरा बेहद जमीनी और समाजी व्यवस्था..ये वो शादी है जिसमें अहम ही अहमियत रखता है.. बाकी चीजें गौण होती हैं.. और निभ जाएं तो वो गर्मजोशी नहीं रह सकती जिसकी वो उम्मीद करते थे..प्यार नाम की खुशबू उड़ चुकी होती है.. और पीछे बचते हैं मैं और तुम.. जाहिर है वो टकराएंगे भी.. दोनों अहम एक दिन खुद को अदालत में पाते हैं..
तो क्या शादी खुद में ही बेवकूफाना व्यवस्था है.. शायद..लेकिन फिलहाल इसका विकल्प भी नहीं.. तजुर्बे चल रहे हैं..शायद कोई नुस्खा कामयाब हो..
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-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }