गूगल मार रहा है अखबारों को

अखबार संकट में हैं...उनके रेट नीचे गिर रहे  हैं और ज्यादा से ज्यादा लोग इंटरनेट की तरफ बढ़ रहे हैं... और इसका दोष है गूगल  के माथे... वो मुफ्त में ऐसा कंटेंट दे रहा है, जिसके लिए अब तक अखबार और  मैग्जीन पैसा वसूलते थे... तो क्या गूगल अखबारों को खत्म करने में जुटा है...

दरअसल, अगर आप साफ तौर पर देखें तो ये गूगल की  गलती नहीं...बल्कि ये गलती है अखबारों और मैग्जीन की, जो खुद को वक्त के साथ ढाल पाने में नाकाम रहे हैं...देखा जाए तो गूगल अखबारों की मदद कर रहा है...मुफ्त में ढेर सारा कंटेंट मुहैया कराकर... जिसके लिए अखबार को कोई पैसा नहीं देना  पड़ता...गूगल न्यूज समेत ढेरों वेबसाइट्स पर मौजूद खबरें और एडऑन जानकारियां  अखबारों को और ज्यादा समृद्ध बना रही हैं... 

दूसरी बात गूगल खबरें चुराता नहीं, बल्कि वो  उनमें से बेहतरीन को छांटता है और उनके लिंक उठाकर लोगों तक पहुंचा देता है... गूगल न्यूज के पेज पर कोई विज्ञापन भी नहीं होता.. अब अगर ऐसे में किसी अखबार के रेट गिर रहे हैं और विज्ञापनदाता उससे हाथ खींच रहे हैं तो गलती किसकी है… गलती अखबार की है…

तरीका है… अखबार के इलेक्ट्रॉनिक वर्शन को मानक बनाकर प्रिंटेड वर्शन को महंगा और स्तरीय बनाना… इस बात को आप भूल जाएं कि लोगों को अखबारी कागज की खुशबू और उसका अहसास अच्छा लगता है इसलिए वो इसे खरीद रहे हैं… वो दरअसल खबर पाने के आसान से आसान तरीके की तलाश में हैं और जैसे ही इंटरनेट ने उन्हें ये मुहैया कराया वो वहां चले गए…

इसलिए अखबार के इलेक्ट्रॉनिक वर्शन को जल्द से जल्द ईमेल के जरिए अपने सब्सक्राइबर के मेलबॉक्स में पहुंचाना जरूरी है… और इसमें भी आसान तरीका इख्तियार करना जरूरी होगा..केवल दिन की खबरें देने से हटकर ऐसी खबरें देनी होंगी जो रियलटाइम हैं… जिनकी अहमियत इंसान के दिन और उसकी सोच पर असर डालती हो…लेकिन ब्रेकिंग खबरों के साथ साथ न्यूज डाइजेस्ट भी जरूरी होंगी… 

गूगल से लड़ने के बजाय उससे फायदा उठाने का तरीका अपनाना होगा… उसके पास ऐसे ढेरों उपकरण हैं जो अखबार की मदद कर सकते हैं…तो एक अखबार को क्या गूगल से लड़ना चाहिए या गूगल की  मदद लेने का तरीका ढूंढना चाहिए…

टिप्पणियाँ

गूगल से लड़ पाना संभव नहीं है, उस से लाभ ही उठाना ठीक है. अखबार एक समय पैदा हुए थे तो उन का समाप्त होना भी अवश्यंभावी है।
Pramod kaunswal ने कहा…
बंधुवर आपने सही कहा है..इस मुल्क़ को ग़रीब ने बचाया हुआ है और दुख कहो या ग़नीमत कि उसके पास गूगल क्या होना- उसे तो अपना नाम लिखना भी नहीं आता। (कम से कम अख़बार में छपे को... एक दूसरे को लोग शेयर करते हैं और काम की बात हो तो उसे संभाल भी लेते हैं)

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