संतोषमय कष्ट के शहर में आपका स्वागत है!
धारावी जरायमपेशा है, धारावी सैलानियों की आंखों की किरकिरी है और धारावी गंदा है...अगर आपसिर्फ इन तीन बातों में यकीन रखते हैं तो इसे न पढ़ें...क्योंकि धारावी के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक और कुछ नहीं हो सकता...
सायन, माहीम और माटुंगा रेलवे स्टेशनों के बीच 100 बस्तियों का करीब 520 एकड़ का इलाका...जिन्होंने कभी धारावी में पैर नहीं रखा, उन्हें ये टिन शेड्स के टैंटों का कबाड़खाना ही लगेगा...धारावी है भी मुंबई का छाया शहर...इस ग्रह की कुछ सबसे बुरी मलिन बस्तियों में एक...जहां एक वर्ग किलोमीटर में करीब 6 लाख जिंदा लोग रहते हों...उसे आप महानगरीय नर्क कहें या अछूत, कोई फर्क नहीं पड़ता...क्योंकि धारावी है और रहेगा...लेकिन इस संतोषमय कष्ट के शहर में आपका स्वागत है...
धारावी के ठीक उत्तरी तरफ है वो मुंबई जिसे आप भारत की आर्थिक राजधानी के बतौर जानते हैं...एक दूसरे के उलट दो सच्चाइयां...बस्ती से गुजरने वाले दो मीटर चौड़े दो पाइप दिन में बस दो घंटे पानी देते हैं...हर पंद्रह सौ इंसानों के लिए एक टॉयलेट....सड़क के दोनों तरफ बने फीकल लैटरीन...हर तीन मिनट पर धारावी की धमनियों से लोकल ट्रेनें गुजरते गुए उसमें जिंदगी फूंकती रहती हैं...
एशिया की दूसरी सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी की ये वो खूबियां हैं...जो आंकड़े बयान करते हैं...पर क्या आपको पता है कि लाखों जिंदगियों से भरपूर इस इलाके में दुनिया की बढ़ती शहरी आबादी को लंबे समय तक जिंदा रखने के तमाम पर्यावरणीय और सामाजिक गुण मौजूद हैं...धारावी को बाहरी दुनिया से कुछ नहीं चाहिए...पूरे धारावी में वहीं बनी चीजें इस्तेमाल होती हैं...अवैध ही सही पर 10 हजार से ज्यादा स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज करीब 10 लाख लोगों का पेट भरती हैं...प्लास्टिक, लकड़ी, पॉटरी, जींस और चमड़े के सामान से धारावी की सालाना कमाई होती है 665 मिलियन डॉलर...अगर प्रिंस चार्ल्स कहते हैं कि धारावी मॉडल ज्यादा वक्त चलेंगे और ऐसी परंपरागत सामाजिक सिस्टम हमारे वक्त की क्रूर और असंवेदनशील व्यवस्था से कहीं ज्यादा अच्छी हैं...तो वो शायद गलत नहीं कह रहे...
इसी धारावी की एक और तस्वीर है जिसे अब ब्रिटिश कंपनियां विदेशियों को दिखाती हैं अपने छोटे-छोटे टुअर के जरिए...पुअरिज्म के नाम से...6.75 डॉलर देकर विदेशी एसी कार में बैठकर इस नर्क का दर्शन करते हैं...स्लमडॉग मिलियॉनेयर पर तूफान उठाने वालों की नजर अभी इस तरफ नहीं पड़ी है...
धारावी में घुसते ही आपके सामने होती है बमुश्किल एक मीटर चौड़ी गली...लेकिन अगर आप हिंदुस्तानी हैं तो वहां की जिंदगी से लबरेज रिदम से तुरंत वाकिफ हो जाएंगे...किसी चॉल से निकलते भक्ति संगीत के साथ-साथ पड़ोस की मस्जिद से अजान की आवाज दोनों सुनाई देंगी...आसपास स्कूल और पूरी यूनीफॉर्म में बच्चे...एक तरफ यहां पुराने कंप्यूटरों के कीबोर्ड तोड़फोड़ कर उनके कलपुर्जे अलग-अलग करते लोग मिल जाएंगे तो दूसरी तरफ बॉलपेन की नीली स्याही के बर्तनों पर काम करते कामगार...पॉलिएस्टर रेजिन के स्टील ड्रमों में कुछ बनाते कामगार दिखेंगे...इनमें से चंद के ही हाथों में दस्ताने होंगे...इंसान के जिस्म से निकली गंदगी से भरे गटर के पास आपको बच्चे खेलते मिल जाएंगे...घरों से दिखेगा उठता हुआ काला धुआं, गलियों के बीचोंबीच फैक्ट्रियों का गंदा पानी और पिघला हुआ वेस्ट...
धारावी के ज्यादातर लोगों के लिए अपना टॉयलेट होना एक सपने जैसा ही होता है...क्योंकि ब्रहन्नमुंबई महानगरपालिका समझती है कि इतनी बड़ी आबादी में सभी के लिए अलग-अलग टॉयलेट बनाकर देना पानी की बर्बादी है...पानी के लिए मारामारी है...औसतन दो किलोमीटर दूर से लाइनों में खड़े होकर पानी भरती महिलाएं दिखेंगी ताकि चॉल में चूल्हा-बासन कर सकें...इसके लिए भी उन्हें गुंडों को हफ्ता देना होता है...धारावी का कामकाज अक्सर लैंड माफिया और गुंडों के कंधों पर ही चल पाता है...बात चाहे पानी की हो या बिजली की...वही मुहैया कराते हैं...प्रशासन के पास धारावी के लिए कुछ नहीं है...
ब्रिटिश पीरियड में गुजरात और महाराष्ट्र की निचली मानी जाने वाली जातियों से बसा धारावी बाद में मुंबई की मिलों की बंदी के बाद बेरोजगार हुए कारीगरों, उत्तर प्रदेश, बिहार से गए लोगों, टैक्सी ड्राइवरों से बसा...
सवाल ये है कि एशिया के दूसरे सबसे बड़े स्लम का तमगा धारावी के लिए फख्र की बात है या शर्म की...अगर आप धारावी में एक दिन बिताएं तो शायद आपको लगे कि दोनों ही सच हैं...एक साथ सबकुछ घट रहा है...एक जिंदादिल शहर का सक्रिय स्लम...धारावी आलसियों, खुदगर्ज और दिन भर रोते रहने वालों को पसंद नहीं करता...सिर्फ कड़ी जद्दोजहद ही यहां बचा सकती है...एक ताकत यहां हरदम काम करती रहती है जो आपको मजबूर करती है कि आप क्या हो सकते हैं... कदम कदम पर धड़कती जिंदगी...अपनी तमाम दुश्वारियों के बावजूद...
धारावी शर्म भी है...60 साल के बुड्ढे और आजाद देश के लिए...धारावी में रफ्तार कायम रखने को मजबूर हिंदुस्तान की कुछ बेहद गंदी बुराइयां भी शामिल हैं...बेवकूफाना कानूनी नुक्तों, गलत-सलत नीतियों और गंदे राजनेताओं के मिश्रण का एक जीता-जागता नमूना है ये...दरअसल धारावी आपको उसतरफ देखने को मजबूर करता है जो भारत को पीछे खींच रहा है...दुनिया के लिए उसका रुख और वोचीजें जो हम बाहर वालों से छिपाना चाहते हैं...धारावी को देखकर आप समझ सकते हैं कि हिंदुस्तान क्या हो सकता है...यही वो जगह भी है जहां हर एक वर्ग मीटर जमीन का खाली हिस्सा तरक्की के एक मौके को जन्म देता है और यही वो जगह भी है जहां बिहार के किसी बेहद दूरदराज के गांव सेआया बच्चा सॉफ्टवेयर की पढ़ाई पढ़ता मिलता है...कहीं ये हिंदुस्तान का भविष्य तो नहीं...जिसे आप अभी देखना-दिखाना नहीं चाहते...
हॉलीवुड को धारावी पसंद आई है...उसे स्लमडॉग पसंद आया है...लेकिन ये उसका अपराध नहीं है...इस फिल्म ने तो उसकी समझ बढ़ाई है- ओह! ऐसा भी हो सकता है...हिंदुस्तान अगर सॉफ्टवेयर जीनियस देता है, तो वही स्लमडॉग भी पैदा करता है...बेशक स्लमडॉग मिलियॉनेयर गरीबी की बात करती है...गरीबी को नंगेपन के साथ उजागर करती है...जाहिर है ये फीलगुड फिल्म नहीं है...जिसकी हम हमेशा से उम्मीद करते आए हैं...ये फिल्म बेचैन करती है...मुंबई का छाया शहर धारावी भी बेचैन करने वाला शहर है...(सभी तस्वीरें:अयान खासनबीस)
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आभार इस आलेख के लिए.