स्लमडॉग की पिटाई की जांच न कराएं रेणुकाजी...
आदरणीय रेणुका जी,
मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने स्लमडॉग अजहर की पिटाई की जांच कराने का कदम उठाने का फैसला किया है...ये वाकई कोई बेहद संवेदनशील मनुष्य ही कर सकता था...
पर आपकी और ज्यादा प्रशंसा से पहले कुछ सवाल करना चाहता हूं... रिपोर्टर की आदत है न छूटती नहीं... क्या आपको पता है कि इस देश में स्लमडॉग रोज पिटते हैं... ढाबों पर, चाय के खोखों में, आपके घर में काम ठीक से न करने पर, चौराहों पर ऑटो गैराज में...और आप इसे नहीं रोक सकतीं... आप आज तक नहीं रोक पाए... जी हां, आप स्लमडॉग को पिटने से नहीं रोक सकतीं रेणुका जी...
माफी चाहूंगा, अगर कुछ ऐसे सवाल कर लूं, जिन्हें सुनने पर आपको बुरा लगे... मेरा पहला सवाल ये है कि क्या इस स्लमडॉग का पिटना आपको बुरा लगा... क्या ये स्लमडॉग कुछ खास है... क्योंकि उसने एक ऐसी फिल्म में काम किया है जिसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है... क्या ये स्लमडॉग ऑस्कर विनर है... इसलिए आपको बुरा लग रहा है...क्योंकि स्लमडॉग तो रोज ही पिटते हैं जिनकी चीखें आप तक नहीं पहुंचतीं... जब राजपथ से आपकी गाड़ी गुजर रही होती है और रेडलाइट पर किताबें या खिलौने, हिंदुस्तान का झंडा बेचने वाला एक स्लमडॉग आपकी गाड़ी के शीशों को हाथ लगाता है, तो आप घृणा से मुंह फेर लेती हैं...हालांकि शायद ही आपको पता हो कि वो कुछ ही देर पहले पिटकर आया होता है... लेकिन आपको उस स्लमडॉग की पिटाई नहीं कचोटती... क्यों?
स्लमडॉग अजहरुद्दीन की पिटाई तो उसके ही बाप ने की है... लेकिन जिन स्लमडॉग्स को आप और हम रोज देखते हैं, उन्हें पीटने वाले उन्हें जन्म देने वाले नहीं, उनका बचपन छीनने वाले होते हैं...क्या उन स्लमडॉग्स को आप स्लमडॉग नहीं मानतीं?
क्या किसी स्लमडॉग का धारावी स्लम में जाकर रहना ही जरूरी है... क्या दिल्ली या दूसरे किसी शहर के स्लम में पिट रहे अजहर को ऑस्कर अर्जित करने वाली फिल्म में काम करना जरूरी है... तभी उसे पिटने से बचाया जा सकता है... क्या सरकारी ओहदेदारों की नजर में वो अभी स्लमडॉग की श्रेणी में नहीं हैं?
मेरा अगला सवाल ये है कि क्या दिल्ली, आगरा, बैंगलोर, नोएडा और मुंबई में भी धारावी से बाहर किसी स्लमडॉग के साथ कुत्ते का सुलूक नहीं हो रहा है... आप पूरी तरह सुनिश्चित हैं?
क्या इन स्लमडॉग्स के साथ हो रहे सुलूक के खिलाफ आपने और आपकी सरकार ने सारे जरूरी कदम उठा लिए हैं और सिर्फ अजहर का मामला ही बचा है जिसे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग जांच करने जा रहा है...?
एक और जरूरी सवाल कि क्या फिजिकल यानी शारीरिक मारपीट ही स्लमडॉग के अधिकारों का उत्पीड़न कहा जा सकता है... क्या इन स्लमडॉग्स के दिलो-दिमाग को चीरकर रख देने वाली गाली-गुफ्तार करने वाले माफ किए जा सकते हैं... क्योंकि उन्होंने उनका शारीरिक उत्पीड़न नहीं किया है?
रेणुका जी, आप बेहतर जानती हैं कि देश में कितने स्लमडॉग हैं और उनके साथ क्या सुलूक हो रहा है... लेकिन शायद ही किसी की तवज्जो उधर जाती हो... भई और भी जरूरी काम हैं...बचपन का ठेका ले रखा है क्या सरकार ने... मैं समझता हूं रेणुका जी
तो फिर इस स्लमडॉग पर कैसे नजर पड़ गई आपकी... क्या इसलिए कि वो इस वक्त मीडिया कंपास में है और आप भी इस मौके को नहीं चूकना चाहतीं...क्रुसेडर की अपनी छवि को और चमकाने का इससे बढ़िया और क्या मौका हो सकता है...हां, मैं समझता हूं...इसमें सदाशयता इतनी नहीं जितनी स्लमडॉग के साथ नाम जोड़ने की तमन्ना है... और जनता इसे जानती है...
लेकिन इसमें आपकी गलती नहीं है...अब बच्चों के चाचा नेहरू तो हैं नहीं जो उनके लिए संवेदनशीलता दिखाएंगे... दीयासलाई के कारखानों, होटलों-ढाबों और ऑटो गैराजों में जिंदगी खर्च रहे स्लमडॉग का अब इस देश में कोई नहीं है...सरकार के पास इतनी संवेदनशीलता बची नहीं कि वो अपने चुनावी गणित से ही बाहर आ सके...
मगर मेरा एक सुझाव है, कृपया आप स्लमडॉग अजहर की पिटाई की जांच-वांच न कराएं... इतना भी कष्ट न उठाएं क्योंकि इससे आपकी छवि खराब होगी...हां बयान जरूर देती रहें...ताकि देशवासी आपको समाज सुधारक के बतौर जानते रहें...स्लमडॉग तो पिटते रहते हैं, पिटते रहेंगे...
इस चुनाव में आपकी फतेह का आकांक्षी
खाली दिमाग
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